एनडीए के नेतृत्व में नीतीश कुमार फिर से एनडीए का चेहरा बनकर सामने आ रहे हैं, जो भाजपा, जदयू और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन में हैं। एनडीए की कोशिश है कि केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों और “डबल इंजन” की सरकार के नाम पर वोटरों को लुभाया जाए। हालांकि, नीतीश कुमार की बार-बार की पाला बदलने की राजनीति से कुछ मतदाता भ्रमित भी नजर आ सकते हैं।और विरोधी इसे बड़ा मुद्दा बना सकते हैं।
महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन तेजस्वी यादव की अगुवाई में मुकाबले में है। तेजस्वी इस समय विपक्ष के नेता के तौर पर सक्रिय भूमिका निभा रहे है। और युवा मतदाताओं में उन्हें लेकर एक उम्मीद भी देखी जाती है। हालांकि, राजद की पारंपरिक वोट बैंक की सीमाएं और गठबंधन में अंतर्विरोध इनके लिए चुनौती बन सकते हैं।
प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा ने बिहार की राजनीति में एक नई धारा जोड़ दी है। वे खुद को पारंपरिक राजनीति से अलग एक विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं, और गांव-गांव जाकर जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराजको 10% वोट मिलने की संभावना जताई गई है।इनमें से 5% वोट इंडिया ब्लॉक से काटे जा सकते हैं।
महागठबंधन अगर प्रशांत किशोर की पार्टी 5% वोट महागठबंधन से काटती है, तो बचते हैं केवल 34% वोट एनडीए 42% वोट के साथ स्पष्ट रूप से आगे दिखाई दे रही है।
इसका मतलब एनडीए को वोट प्रतिशत के आधार पर बढ़त मिलती दिख रही है। प्रशांत किशोर की पार्टी सीधे तौर पर भले ही जीत की स्थिति में न हो, लेकिन महागठबंधन को नुकसान पहुंचाने वाली पार्टी के रूप में उभर रही है। यदि यह ट्रेंड बना रहा, तो बीजेपी नेतृत्व वाला एनडीए लोकसभा चुनाव 2024 या अगला विधानसभा चुनाव दोनों में फायदे में रह सकता है।
जन सुराज की भूमिका भले ही वे खुद ज्यादा सीटें न जीतें, लेकिन किंगमेकर या डैमेजमेकर दोनों की भूमिका निभा सकते हैं।
एनडीए का फायदा – विपक्षी वोटों का बंटवारा NDA के सीधी बढ़त में बदल सकता है।

