- लोगों का अपील नही आया काम, दीपों के तुलना में चाइनीज सामान की खरीदारी ज्यादा
दीपावली शब्द ही जिस दीप से बना है, उसका अस्तित्व आज ख़तरे में है। जैसे जैसे ये जमाने का चलन बदल रहा है मिट्टी के दिए की कहानी भी खत्म होती जा रही है। कुम्हारो का दर्द है कि उनका ये पुस्तैनी पेशा बाजार के अभाव में दम तोड़ता जा रहा है। हालात ये है कि दीवाली से पहले चौपारण के कुम्हार के चेहरे पर उदासी व मायूसी छाया रहा।
जानकारों की माने तो कुम्हार द्वारा मेहनत कर बनाये गए मिट्टी के दीप का सही मेहनताना तक नही मिल पाता है। कई कुम्हार पुस्तैनी काम होने की वजह से मजबूरन इस व्यवसाय से जुड़े हुए है जबकि कई कुम्हार इस पेशा को छोड़कर अन्य रोजगार के तलाश में लगे हुए है । बाजार में कम किमत पर चीन द्वारा निर्मित एलईडी बल्ब की लरी व अन्य उत्पादों की मांग ज्यादा होने की वजह से भी दीपों का खरीदारी कम हो रही है।
इस दौरान चौपारण रिपोर्टर ने चौपारण बाजार में कुम्हार द्वारा बनाये गए दीपों का बिक्री कर रहे युवक व युवती से बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी पीड़ा को सुनाते हुए कहा कि एक जमाना था जब दीवाली हमारे लिए व्यवस्त समय होता था, लोग घरों में दीपावली के दिन घी तेल के दिए जलाते थे और सौ दो सौ व हज़ार दिए तक घरों के लिए खरीदे जाते थे, लेकिन आजकल 10-20 से ही काम चला लेते हैं. और कई घरों में तो वो भी नहीं. मोमबत्ती और बिजली की झालर है तो दीए को कौन पूछता है। आज से 10 से 15 वर्ष पूर्व कुम्हार द्वारा निर्मित दिए का टोकरी घर घर पहुँचता था लेकिन आज बाजार में भी खरीदार कम मिल रहे है। लगातार सोशल मीडिया पर लोग दीपावली पर मिट्टी के दिये जलाने का अपील करते दिख रहे है लेकिन इसका कोई असर नही के बराबर हो रहा हो।
घर में जलाएं मिट्टी के दिये, तभी बचेगा कुम्हारों की पहचान : प्रमुख चौपारण
चौपारण प्रमुख पूर्णिमा देवी ने लोगों से अपील किया कि कुम्हार द्वारा बनाये गए दीपों को खरीदे ताकि कुम्हार के परिवार का भरण पोषण हो सके एवम इनके मेहनत का सही मेहनताना मिल सके। चाइनीज लाईट कुम्हार की पहचान को खतम कर रहा है। इस दीपावली अपने घरों को दीपों से करे जगमग।