Friday, September 20, 2024
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एनएमओपीएस बैनर तले पेंशन चेतना यात्रा सह जिला अधिवेशन संपन्न

आकलन के नाम पर पेंशन की घोषणा में विलंब ठीक नहीं- मुन्ना कुशवाहा, जिला संयोजक गिरिडीह , एनएमओपीएस झारखण्ड

रविवार को गिरिडीह, में एनएमओपीएस झारखण्ड के आह्वान पर पेंशन चेतना यात्रा सह-जिला अधिवेशन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में सरकारी कर्मचारियों/पदाधिकारियों के करीब सोलह संगठनों के पदाधिकारियों और पेंशन विहीन सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।

जिला संयोजक मुन्ना कुशवाहा ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा की पुरानी पेंशन आज सरकारी कर्मचारियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं जायज माँग है इसलिए इस मुद्दे नें आज सभी कर्मचारी संगठनों को एक मंच पर ले आया है।

वर्तमान में पुरानी पेंशन का मुद्दा पूरे राष्ट्रीय पटल पर छाया हुआ है। चाहे उत्तर में उत्तराखंड और हिमाचल हो, चाहे पश्चिम में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान, चाहे दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना या चाहे पूर्व में यूपी, बिहार, झारखण्ड हर जगह यह मुद्दा गुन्जायमान है।

इस मुद्दे पर आन्ध्र प्रदेश और झारखण्ड में सत्ता परिवर्तन हो चुका है बावजूद वायदे के मुताबिक सरकार हमारे हक को लागू करने में विलंब कर रही है। चतुर्थवर्गीय कर्मचारी महासंघ के अशोक सिंह ने कहा एक सरकारी कर्मचारी औसतन 25-30 वर्ष तक सेवा में रहता है जबकी सरकारें पाँच वर्ष के लिये आती हैं।

इन सरकारों के पंचायत प्रतिनिधि से लेकर विधायक और सांसद के पर्चा को दाखिल करने से लेकर वोटिंग और उसके बाद मतगणना तक सरकारी कर्मचारी का अहम रोल होता है। पर अक्सर यह देखा जाता है की सत्ता के सपने देखने तक जो राजनेता कर्मचारियों के अपने सहोदर भाई से बढ़कर सुख-दुःख समझने की बात करते रहते हैं वे सत्ता मिलते ही ब्यूरोक्रेसी के चपेट में आ जाते हैं।

झारखंड में सरकार गठन हुए काफी समय बीत चुका है पर अभी तक पुरानी पेंशन को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है जिससे कहीं न कहीं कर्मचारियों में असंतोष की स्थिति पनप रही है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा अपनी सरकार के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर और एनएमओपीएस, झारखण्ड के शिष्टमंडल से हुई वार्ता के दौरान अपने घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल किये गये पुरानी पेंशन बहाली के संकल्प में दृढ़ता का भरोसा तो दिया पर बजट सत्र के दौरान ओपीएस पर पूछे गये प्रश्न पर रुख स्पष्ट नज़र नहीं आया, जिससे कर्मचारी असमंजस की स्थिति में हैं। सरकार में शामिल कॉंग्रेस के नेतागण अगर इस मुद्दे पर समर्थन करते हुए दिखे तो उन्हीं के दल के कुछ वरिष्ठ नेताओं का रवैया इस मुद्दे पर तकरीबन नाकारात्मक है।

सभी संगठनों के जिला पदाधिकारियों ने सरकार के बयानों के अनुसार वर्तमान में इसे बहाल करने हेतु आकलन चल रहा है पर आकलन की बात से ही कर्मचारी चिढ़ रहे हैं, उनका कहना है कि क्या माननीय मुख्यमंत्री जी ने अपना घोषणापत्र बिना किसी आकलन के ही तैयार किया था?

कॉंग्रेस ने कर्मचारियों के मनोभाव को समझते हुए वर्तमान में कांग्रेस शासित दो राज्यों यथा राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने तो चुनाव का बिगुल फुँके जाने से काफी पहले सदन के पटल पर दिये अपने बजटीय भाषण में पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा तक कर दी है। राजस्थान में तो बकायदा इस पर औपचारिक कार्रवाई भी शुरु हो चुकी है। भाजपा शासित मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को सत्ता और विपक्ष दोनों तरफ के तकरीबन 71 विधायकों द्वारा पुरानी पेंशन बहाली हेतु अपना निवेदन पत्र दिया गया है और सरकार भी अब सीधे मना न कर साकारात्मक रुप से इस मुद्दे में झाँक कर इसकी गहराई का अंदाज़ा लगा रही है।

पुरानी पेंशन के विरुद्ध ईरादतन तरीके से फैलाया गया सबसे बड़ा झूठ यह है की ओपीएस से सरकार की देयतायें वित्तीय घाटे की स्थिति को जन्म देती हैं और एनपीएस के माध्यम से इस बोझ को कम भी किया गया है और कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा भी दी गई है। जबकी तथ्य ठीक इसके उलट है।

शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने कहा की एनपीएस जो शेयर बाज़ार आधारित है उसके तहत रिटायर होने वाले कुछ कर्मचारी तो वृद्धा पेंशन से भी कम पेंशन पा रहे हैं और कई महज़ 3-4 हज़ार एनपीएस ने पब्लिक मनी को एक बड़े एनपीए में बदल दिया है और इसपर होने वाला खर्च ओपीएस से कुछ मामलों में तो ज़्यादा ही है और औसत तौर पर ओपीएस के आसपास ही।

एनपीएस और बात-बात पर शिखर छूने और गोता लगाने वाले शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था में आस्था रखने वाले भी न्युनतम पेंशन की गारंटी देने के नाम पर बगलें झाँकने लगते हैं।

कोई इसका कोई ठोस तर्क दे ही नहीं सकता की पुरानी पेंशन बहाली की जगह एनपीएस कैसे बेहतर है? क्योंकि जो माननीय लोग एनपीएस का पक्ष लेते हैं वे स्वयं ओपीएस लेकर बैठे हुए हैं। दम और विश्वास है तो वे भी एक बार इसका मज़ा लेकर देखें।

आज का यह कार्यक्रम झारखण्ड के पेंशनविहीन कर्मचारियों/पदाधिकारियों में अपने पेंशन अधिकार के प्रति जागरूकता एवं बदलते घटनाक्रम के अनुसार आन्दोलन की गति, स्वरूप और दिशा निर्धारित करने हेतु आयोजित किया गया।

इस हेतु सरकारी कर्मियों द्वारा कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सर जे सी बोस बालिका उच्च विद्यालय से नटराज, टावर चौक मधुबन वेजिस होते हुए पेंशन चेतना यात्रा निकाली गयी और सभा में एक अधिवेशन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एनएमओपीएस झारखण्ड के कोषाध्यक्ष नितिन कुमार बतौर मुख्य अतिथि जिला के जिला संयोजक मुन्ना प्रसाद कुशवाहा, रविकांत चौधरी, नौशाद शमा ,देवेंद्र प्रसाद सिंह, अख्तर अंसारी, कुंवर लाल पाहन, तेकलेश्वर महतो, कल्पना सिंह, विनोद राम, प्रियंका माथुर, संरक्षक घनश्याम गोस्वामी, इम्तियाज अंसारी, शमा परवीन, संजय कुमार महतो, भारत मांझी, सुखदेव शर्मा, विमलेंदु त्रिपाठी, संजीव कुमार, दीपक कुमार, रेणु कुमारी ओंबार्ट, विकास सिन्हा उपस्थित रहे।

विशिष्ट अतिथि के रुप में महासंघ के अशोक कुमार सिंह ने जागरुकता फैलाई। जिले के शिक्षा, स्वास्थ्य, कर्मचारी, वन पुलिस एसोसिएशन, कर्मचारी संघ जनसेवक संघ, पंचायत सचिव, शिक्षेतर्र कर्मचारी संघ सहित सभी संगठन के सैकड़ों लोग थे।

एनएमओपीएस की सभी प्रखंड संयोजक ने भी अपने संबोधन के माध्यम से इस आन्दोलन का पुरज़ोर समर्थन किया। पुरानी पेंशन बहाली हेतु सरकार से संवाद जारी है पर धैर्य और इंतेज़ार की भी एक सीमा होती है। कर्मचारियों को हल्के में लेना सरकार और कर्मियों के बीच के समन्वय में अच्छे वातावरण का परिचायक नहीं है जो कभी भी तीव्र अन्दोलन का रुप लेने में सक्षम है।

हालांकि एनएमओपीएस झारखण्ड ने सरकार में अपना विश्वास जताया है और यह कहा की हो सकता है कि आने वाला समय विधायिका और कार्यपालिका के सुखद रिश्तों की गाथा लिखने वाला हो और यह भी हो सकता है की पुरानी पेंशन (हुबहू) बहाली हेतु ससमय किसी सकारात्मक आधिकारिक कार्रवाई के इंतज़ार से अधीर होकर अंततः हम एक ऐसी स्थिति में न पहुँच जायें की तब आसानी से हो सकने वाले इस कार्य के लिये हमें सरकार से ही कड़ा संघर्ष करना पड़े। इसके पहले दीप प्रज्वलन कर और अतिथियों को बुके, शॉल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।अधिवेशन का संचालन शिक्षक युगल किशोर पंडित और धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष रविकांत चौधरी ने किया।

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