Monday, December 23, 2024
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गुलाब-जामुन, गुड़ तो कहीं खीरमोहन,पेड़ा, ऐसा है बालूशाही का रोचक इतिहास!

दुनियाभर में प्रसिद्ध है टाटीझरिया, चौपारण, बडकागांव, ईचाक, पदमा की मिठाइयों का स्वाद

Dainik Bharat, विशेष संवाददाता: अगर आपको भी मिठाइयां खाने का बहुत शौक हैं, तो हजारीबाग के कुछ इलाके आपके लिए बेस्ट हैं क्योंकि यहां मिलती है मन को मोहित और जुबान को खुश करने वाली कुछ सुप्रसिद्ध मिठाइयां।

टाटीझरिया का गुलाब-जामुन, चौपारण का खीरमोहन, ईचाक का बालुसाही, बडकागांव का गुड, पदमा का पेडा को कौन नहीं जानता। हर कोई यह इच्छा रखता है कि जीवन में एक बार तो यह सुप्रसिद्ध मिठाई खाने का अवसर मिल ही जाए। अगर आप घूमने और सांस्कृतिक कला की चाह रखते हैं तो आप हजारीबाग के अलग-अलग इलाकों की संस्कृतियों को उनकी मिठाइयों के माध्यम से भी जान पाएंगे। आइए जानिए कुछ प्रसिद्ध इलाके और उनसे जुड़ी मिठाइयों के बारे में जानते हैं।

गुलाब-जामुन, टाटीझरिया

हजारीबाग जिला मुख्यालय से एनएच-100 के 25 किमी की दूरी पर स्थित टाटीझरिया का गुलाबजामुन दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। यहां रोजाना हजारों गाडियां रूककर गुलाब-जामुन का स्वाद लेते हैं। खोवा और मैदा से बनी इस मिठाई का स्वाद पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर कई सीएम, मंत्री, अभिनेता, अधिकारी ले चुके हैं।

गुलाबजामुन से यहां की व्यावसायिक क्षमता बढ़ी है साथ ही सैकडों लोगों को इससे रोजगार मिला है। दर्जन भर गुलाब-जामुन दुकानों में 6 रूपये पीस से लेकर 20 रूपये पीस तक और 160 से 500 रूपये किलो तक की बिक्री होता है।

गुलाब-जामुन की बिक्री बढ़ने से यहां के दूध व्यवसाय को भी काफी बढ़ावा मिला है। गुलाब-जामुन के स्वाद की प्रशंसा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कर चुके हैं। यहां के गुलाब-जामुन का स्वाद ही है कि लालू यादव, शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, शत्रुघ्न सिन्हा, महिमा चौधरी, चंद्रचूड़ सिंह, हरीश के अलावा कई मंत्री, अधिकारी और बॉलीवुड के कलाकारों ने गुलाब-जामुन का स्वाद लिया है। 1948 में पीडब्लूडी के डाक बंगला के सामने झोपड़ीनुमा होटल से शुरू हुई गुलाब-जामुन होटलें अब आलीशान हो चुके हैं। कुछ होटल अब रेस्टोरेंट में बदल गए हैं जहां सुविधाएं अधिक है।

इसमें होटल पंडित जी, श्री प्रधान जी, बाबा होटल, नायक प्रधान जी, ओम प्रधान जी का नाम शामिल है। इस राह से हजारों छोटी-बड़ी गाड़ियों से गुजरने वाले लोग यहां रूककर गुलाब-जामुन का स्वाद खुद भी लेते हैं और संदेश में सगे-संबंधियों के लिए भी लेकर जाते हैं। कई बसें भी यहां रूकती हैं। खोआ और मैदा से निर्मित घी में छने इस मिठाई को एक बार जो चखा वह इसकी मुरीद हो गया।

खीरमोहन, चौपारण

एक मिठाई, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी चखा था। आज यह मिठाई चौपारण का ही नही दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुकी है। जिसके बगैर क्षेत्र का कोई भी समारोह अधूरा माना जाता है। हां यहां बात हो रही है चौपारण की प्रसिद्ध मिठाई खीरमोहन की, जो आज अपनी मीठी सौंधी खुशबू जिले और राज्य ही नही राज्य कर बाहर तथा स्विट्जरलैंड, इंलैंड, अमेरिका, सऊदी अरब जैसे कई देशों भी बिखेर चुका है।

ऐतिहासिक मिठाई खीरमोहन की शुरूआत चौपारण में 1932 में हुई। खीरमोहन मिठाई सबसे पहले विष्णु यादव उर्फ विशुनी महतो ने बनाई थी। तब देश अंग्रेजों के अधीन था। अंग्रेजों के अधिकारी, फौज ने भी खीरमोहन का स्वाद चखा। 1942 के दौर में भारत छोड़ो आंदोलन के काल मे महात्मा गांधी को भी खीरमोहन परोसा गया, जिसे उन्होंने चखा और सराहा।

चौपारण में खीरमोहन के जन्मदाता सह संस्थापक विशुनी महतो की तीन पीढियां आज भी जीटी रोड चौपारण में खीरमोहन बेच रहे है। विशुनी महतो का विष्णु खीरमोहन का स्वाद देश के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू, विनोबा भावे, कृष्ण बल्लभ सहाय जैसे महान स्वंय सेवक सेनानियों तथा राजनीतिक क्षेत्र के लालू यादव, अर्जुन मुंडा, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, अमर सिंह, यशवंत सिन्हा, महेंद्र सिंह धौनी, स्टार शत्रुधन सिन्हा, हेमा मालनी, राजबब्बर, स्मृति ईरानी, स्वेता तिवारी भी खीरमोहन का स्वाद ले चुके है। बताया गया कि सोंधी खुशबू युक्त खीरमोहन शुद्ध छेना से निर्मित उत्पाद है, जिसमे भैस का दूध अधिक होता है।

चौपारण में सौ से अधिक खुले खीरमोहन दुकान

वर्ष 1990 तक चौपारण में एक ही खीरमोहन की दुकान विष्णु खीरमोहन था। इसके बाद जीटी रोड पर खीरमोहन नाम से कुछ दुकानें खुली। वर्ष 2005 के बाद से दर्जन भर खीरमोहन की दुकान था। आज तो चौपारण जीटी रोड पर सौ से अधिक खीरमोहन की दुकानें खुल गई। पहले अधिकांश दुकान जीटी रोड के बस स्टैंड के आसपास होती थी, लेकिन आज 10-20 किमी क्षेत्रफल में जीटी रोड पर कई खीरमोहन की दुकानें खुल गई। पिछले एक माह में 16 खीरमोहन की दुकान खुली हर दिन जीटी पर एक-दो दुकानें खुल रही है।

कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौर में छोटे दुकानदारों के लिए जीविकोपार्जन का साधन बन गया है।

लाख रुपए का है कारोबार

जीटी रोड पर चौपारण का प्रसिद्व सोंधी खुशबू का खीरमोहन का कारोबार प्रति दिन एक लाख रुपए से अधिक का हो रहा है। पांच हज़ार परिवार का जीविकोपार्जन का साधन बन गया है। जीटी रोड चौपारण के अलावे बरही, ईटखोरी, बिहार के बाराचट्टी में चौपारण का खीरमोहन दुकान खुल गई है।

चौपारण का खीरमोहन बिहार, यूपी, पंजाब, राजस्थान, बंगाल, उड़ीसा तक जा रही है। झारखंड के सभी जिले सहित बिहार, यूपी और बंगाल तक हर दिन खीरमोहन की खुशबू पहुंच रही है।

बालूशाही, ईचाक

बालूशाही का नाम लेते ही हमारे जेहन में ईचाक की तस्वीर बनती है। बालूशाही की खासियत ही यही है कि मुंह में डालते ही घुल जाती है। भारतीय मिठाइयों में देसी घी और चाशनी की प्राथमिकता होती है। बालूशाही भी इन दोनों चीजों के बिना नहीं बन सकती है। घी की खुशबू और चाशनी की मिठास लिए बालूशाही हर किसी की पसंदीदा मिठाइयों में से है। मैदे के मिश्रण, घी और चाशनी से बालूशाही तैयार की जाती है। मैदे की लोइयों को घी में सेंका जाता है फिर चाशनी में डुबोकर कुछ देर बाद निकाला जाता है। यकीन मानिए जब बालूशाही चाशनी में गोता लगाती हैं तो मिठाई बाजार में इसकी खुशबू महक उठती है।

गुड़, बडकागांव

उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के मुख्यालय हजारीबाग जिले का प्रमुख सब्जी और अनाज उत्पादक प्रखंड बड़कागांव की पहचान यहां की गुड़ से भी है। यहां का गुड़ राज्य के साथ-साथ देश के अन्य स्थानों तक भी पहुंचता है। यहां के गुड़ की खुशबू और बेहतरीन स्वाद के कारण दूर-दूर से लोग और व्यापारी गुड़ खरीदने यहां पहुंचते हैं। गुड़ का निर्माण गांव के ग्रामीण अपने हाथों से करते हैं। जिसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है।

किसान पहले खेतों में गन्ना की खेती करते हैं और जाड़े के वक्त गन्ने की कटाई होती है। कटाई करने के बाद किसान उसे अपने घर या फिर खेत में ही गुड़ बनाने का काम करते हैं। पहले इसके रस को मशीन से निकाला जाता है और फिर बड़े कढ़ाई में उसे गर्म किया जाता है। बड़े चूल्हे में भाट बनाने के बाद अन्य प्रक्रियाओं से गुजरते हुए यहां ढेला गुड़ का निर्माण होता है। इसे करने के लिए किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। बड़कागांव हाल के दिनों में कोयला उत्पादन के लिए पूरे देश में जाना जा रहा है। लेकिन गुड़ की मीठी स्वाद बड़कागांव की पहचान है। जरूरत है इस लघु उद्योग को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की, ताकि किसानों को लाभ मिल सके और वह अपना जीवन स्तर ऊंचा कर सकें।

पेड़ा, पदमा

पदमा का पेड़ा, मुंह में जाते ही घुल जाए। इसकी मिठास ऐसी कि देखते ही मुंह में पानी आ जाए, तभी तो इधर से गुजरने वाले राहगीरों के कदम कुछ देर के लिए जरूर ठहर जाते हैं। खोये से बने पेड़े की प्रसिद्धि इतनी है कि इस राह से गुजरने वाले लोग यहां कतार लगाए रहते हैं।

खास तौर से पदमा गेट के पास प्रसिद्ध पेड़े की दुकानों पर रोजाना जमावड़ा लगता है। दूर-दूर तक के लोग यहां से खरीद कर ले जाते हैं। खोआ का पेड़ा इतना शुद्ध और देखने में सुंदर होता है कि लोगों में इसकी मांग बढने लगी है। पेड़ा बेचने वाले दुकानदार ने बताया कि इससे अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है और इसी के सहारे परिवार की परवरिश भी होती है। इसे स्थानीय घरों की गाय के दूध से बनाया जाता है और यह पूर्ण रूप से शुद्ध होता है।

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