दक्षा वैदकर, भोपाल: आज के समय में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जो कहेगा कि मेरे पास टाइम ही टाइम है। आजकल तो हर कोई यही कहता है कि मेरा पूरा दिन कहां निकल जाता है, कुछ पता ही नहीं चलता। अगर आप भी यही डायलॉग बार-बार कहते हैं कि मेरे पास तो वक्त ही नहीं है, क्या करूं? तो इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें।
आपको समझ आ जाएगा कि आप कहां, कब और कितना टाइम वेस्ट कर रहे हैं। वैसे ये सब आप जान-बुझकर नहीं कर रहे, अनजाने में कर रहे हैं। बस आपको इन छोटी-छोटी रुकावटों, ध्यान बंटाने वाली चीजों पर अपना कंट्रोल रखना है, तो आप अपना ढेर सारा समय बचा सकते हैं। इस समय को अपनी जिंदगी को बेहतर करने में लगा सकते हैं। अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं।
1. स्क्रीन टाइम में जाता है समय ज्यादा टाइम
सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल देखते हैं। किसके-किसके मैसेज आये? ये देखते हैं। जो लोग गुड मॉर्निंग मैसेज भेजते हैं, उन्हें जवाब देते हैं। सोशल साइट्स पर नोटिफिकेशन चेक करते हैं। हमने कल जो पोस्ट डाली थी, उसमें कितने लाइक आये, किसने, क्या कमेंट किया? उनका जवाब थैंक्यू… थैंक्यू देते हैं। फिर ये देखने लगते हैं कि बाकि सब ने आज क्या डाला। किसी ने घूमने की तस्वीर डाली तो सोचने लगे कि हम क्यों नहीं जाते घूमने? कब जाएंगे? किसी कपल की हैप्पी तसवीर देख ली, तो सोचा कि हम इतने खुश क्यों नहीं? इस तरह सोशल साइट्स देखते-देखते सोचना, जलन करना, दुखी होना जारी रहता है। इसमें टाइम जाता है।
बीच-बीच में विज्ञापन भी आते हैं। कोई ड्रेस वाली साइट के चंद ड्रेसेज दिख गये तो उस साइट में ही हम घुस जाते हैं। हम घंटों विंडो शॉपिंग करते रहते हैं। ड्रेसेज निहारते रहते हैं। कई बार जरूरत न होने पर शॉपिंग भी कर लेते हैं। इसमें भी काफी टाइम जाता है।
इसके अलावा पुुरुषों का टाइम ज्यादातर मोबाइल गेम्स, न्यूज चैनल्स, यूट्यूब वीडियोज आदि में जाता है। पत्नी लगातार बोलती रहती है कि नहाने जाओ। हमें बाहर जाना है… और पति ‘बस 5 मिनट में जाता हूं नहाने..’ कह कर घंटों गेम्स खेलने में बीता देते हैं। इस तरह घर में झगड़े भी होते हैं, लेकिन हम स्क्रीन टाइम कम नहीं करते। एक के बाद एक वीडियो देखते जाते हैं, लेकिन हमारा मन नहीं भरता। हमें भले ही लगता है कि हमने बस कुछ मिनट ही मोबाइल देखा, लेकिन असल में ये कई घंटे होते हैं। आप बस दिनभर के टाइम को एक बार जोड़ कर देख लें। आपको आश्चर्य होगा कि आपने कितने घंटे बेकार कर दिये।
2. फालतू की बातों में वक्त का पता नहीं चलता
कई बार ऐसा होता है कि हम कोई काम करने का मन बनाते हैं, लेकिन अचानक पडोसी कोई चीज मांगने आ जाते है और फिर हम इधर-उधर की बातें करने बैठ जाते हैं। इसके घर बेटा हुआ, उसके घर से झगड़े की आवाजें आ रही थी… आज खाने में क्या बनाया? सास ने मुझसे ऐसा कहा.. जैसी तमाम बातें करते-करते 2-3 घंटे आराम से बीत जाते हैं।
पुरुष भी ऑफिस में बार-बार चाय पीने, सिगरेट पीने बाहर जाते हैं और ऐसे कई बार ब्रेक लेकर घंटों कुलिग से बात करते रहते हैं। इसमें भी काफी समय बर्बाद होता है, जो यूं नजर नहीं आता। कई लोग छुट्टी के दिन भी मोबाइल में घंटों बात करते हैं। परिवार वाले इंतजार करते रह जाते हैं कि अब ये मोबाइल रखेंगे और हमें वक्त देंगे, लेकिन हमारा फोन पर बात करना रूकता ही नहीं। ऐसे में घर का माहौल भी खराब होता है।
3. फिजूल के झगड़े, नाराजगी
कई बार हम बहुत छोटी-छोटी बात पर घरवालों से झगड़ लेते हैं, नाराज हो जाते हैं। झगड़े के दौरान एक-दूसरे को ऐसी बात बोल देते हैं, जो नहीं बोलनी चाहिए। इसके बाद इस झगड़े के बारे में सोच-सोचकर बहुत सारा समय बर्बाद करते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अगर सुबह झगड़ा हुआ तो हम कमरे में बंद होकर या बिस्तर पर पड़े रोते-रोते पूरा दिन वहीं गुजार देते हैं। हमारी कमरे से बाहर निकलने और कुछ भी काम करने की इच्छा ही नहीं होती। ऐसे में पूरा दिन हमारा बगैर कोई काम किये निकल जाता है। यह वो समय होता है, जिसे हम अच्छे कामों में लगा सकते थे, लेकिन हमने फिजूल में झगड़ा बढ़ाकर इसे बर्बाद कर दिया। इस बारे में गहराई से सोचें।
4. हद से ज्यादा सोचने, चिंता करने की आदत
कई बार हम यूं ही बैठे-बैठे सोचते रहते हैं। कभी पुरानी किसी घटना को लेकर सोचते हैं, तो कभी भविष्य को लेकर चिंता करते हैं कि कैसे होगा… क्या होगा…। हमें जरूरत है कि हम वर्तमान में रहें और वर्तमान के बारे में सोचें क्योंकि बीत चुके समय का भी हम कुछ नहीं कर सकते और भविष्य में जो होगा, उस पर भी हमारा कंट्रोल नहीं। जो होना है, वो होगा ही। हां, हम वर्तमान में अपने हर पल का सही उपयोग कर भविष्य संवार सकते हैं।
5. प्लानिंग कर के काम निपटाएं, ऑर्गनाइज्ड रहें
घर का राशन का सामान लिस्ट बनाकर लेकर आएं। सब्जी लेने जाएं तो लिस्ट बनाकर जाएं, क्योंकि जब आप लिस्ट नहीं बनाते, तो कोई न कोई सामान लाना रह जाता है। फिर जब आपको घर वाले कुछ बनाने की फरमाइश करते हैं, तब आपको याद आता है कि फलां सामान तो है ही नहीं। तब एन वक्त पर आपको सामान लेने बाहर जाना पड़ता है, इसमें टाइम वेस्ट होता है।
इसके अलावा घर की सारी चीजें ऑर्गनाइज्ड रखें। बिजली के बिल, रसीद, बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड जैसी सारी चीजों को सही जगहों पर रखें। कई बार बहुत छोटी-छोटी चीजें एन वक्त पर नहीं मिलने के कारण हमारा बहुत समय बर्बाद होता है। जैसे आपने चश्मा सही जगह नहीं रखा और कहीं बाहर जाने के वक्त आप उसे ढूंढ रहे हैं। आपको कहीं बाहर जाना है और आपको मास्क नहीं मिल रहा, मोजे नहीं मिल रहे। सलवार-सूट का दुपट्टा नहीं मिल रहा… वगैरह… वगैरह। इस तरह चीजों को ढूंढने में समय न जाएं, उसके लिए बेहतर है कि ऑर्गनाइज्ड रहें।
6. हद से ज्यादा सोशल होना भी घटाता है प्रोडक्टिविटी
कुछ खास दोस्त बनाना सभी के लिए जरूरी है, रिश्तेदारों से मिलना-जुलना भी ठीक है, लेकिन कुछ लोगों को पार्टी करना इतना पसंद होता है कि ढेर सारे दोस्त बना लेते है, क्लब जॉइन कर लेते हैं। आज फलां के घर गेट-टू-गेदर, कल किसी और के घर। हर रोज किसी ने किसी के साथ पार्टी हो रही है। घंटों तैयार होने में, ड्रेस डिसाइड करने में जा रहे हैं। वहां गप्पे मारने में घंटों जा रहे हैं। इस तरह हर शाम के 5-6 घंटे बर्बाद होते ही हैं। फिर जब कोई जरूरी काम कई महीने आप कर नहीं पाते तो आपको लगता है कि आपको बीते दिनों खुद के लिए समय ही नहीं मिला।
इन बातों का ध्यान रखें
टीवी पर कुछ प्रोग्राम्स ही फिक्स रखें। बस वहीं देखें। उसके बाद टीवी बंद कर दें। बेफिजूल रिमोट से चैनल बदल-बदल कर अच्छा प्रोग्राम तलाशने के चक्कर में घंटा भर निकालने की जरूरत नहीं।
नोटिफिकेशन की आवाज ‘बीप-बीप’ को म्यूट कर के रखें। इस तरह आपका ध्यान उस आवाज पर जाएगा नहीं और आप बार-बार फोन उठाने की गलती नहीं करेंगे।
व्हॉट्सएप पर जो फैमिली ग्रुप हैं, दोस्तों के ग्रुप हैं, जो सिर्फ जोक वगैरह भेजते हैं, उस ग्रुप को म्यूट रखें। इस तरह आप लगातार फोन बजने से डिस्टर्ब नहीं होंगे और जब आप फ्री होंगे, तभी फोन देखेंगे।
छोटे-छोटे झगड़ों को तुरंत खत्म करें। राई का पहाड़ बनाकर घर का माहौल खराब न करें। खुद का मूड खराब कर घर के कामों से किनारा न करें। उस वक्त को पॉजीटिव काम में लगाएं।
अगर आप कोई काम कर रहे हैं और कोई फोन आ गया, कोई पडोसी आ गया तो उनसे कहें कि आप काम कर रहे हैं, थोड़ी देर बाद फ्री होकर बात करेंगे। काम को रोककर गप्प मारने न बैठें।
(हम ये नहीं कर रहे कि टीवी, मोबाइल देखना बंद करें। लोगों से बात करना बंद करें, लेकिन एक बात जरूर है कि आपको खुद पर कंट्रोल रखना सीखना होगा, हर चीज को देखने की लिमिट खुद तय करनी होगी, तब जिंदगी बेहतर होगा)