इचाक प्रखंड आलू उत्पादन (Potato Production) का हब बन चुका है। इचाक का लाल गुलाबी आलू की मांग बंगाल, यूपी और बिहार में खूब है।
किसानों ने बताया कि उत्पादित आलू की सबसे अधिक डिमांड कानपुर से आती है। कारण कि किसान कानपुर उत्तम किस्म के बीज मंगवाते हैं। कम पूंजी वाले किसानों को का के गद्दीदार अच्छे किस्म का बीज उधार दे देते हैं। बस उनका एव शर्त रहता है कि उत्पादित आलू को उनके ही गद्दी में बेचना है।
इचाक प्रखंड आलू उत्पादन का हब बन चुका है। यहां के 138 राजस्व गांवो में से अधिकतर में आलू की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। यहां के किसानो को आलू उत्पादन में महारत हासिल है। किसान इसे नकदी फसल का रूप दे चुके हैं। जिसका मुख्य वजह है कि फसल बोने के बाद 75 से 90 दिनों में तैयार हो जाता है।
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जिसके बाद उत्पादित फसल को वे अच्छे दामों में बेचते हैं। आलू खरीदने के लिए बिहार, यूपी और बंगाल के व्यापारी गाड़ी लेकर उनके खेती तक सहज ही पहुंचते हैं। उन्हें उत्पादित फसल को बेचने के लिए बाजार तक नहीं जाना पड़ता है। इससे न सिर्फ समय बल्कि ट्रांर्सपोर्टिंग खर्च की बचत होती है। किसानों ने बताया कि उत्पादित आलू की सबसे अधिक डिमांड कानपुर से आती है। कारण कि किसान कानपुर उत्तम किस्म के बीज मंगवाते हैं।
कम पूंजी वाले किसानों को का के गद्दीदार अच्छे किस्म का बीज उधार दे देते हैं। बस उनका एव शर्त रहता है कि उत्पादित आलू को उनके ही गद्दी में बेचना है। इचाक का लाल गुलाबी आलू की मांग बंगाल, यूपी और बिहार में खूब है। इचाक के मंडपा, फुफंदी, कालाद्वार, मूर्तियां, आरा दरहा, पोखरिया, थेपाईं, दरिया, उरुक, मोकतमा, कारीमाटी, चंदवारा समेत अन्य गांवों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है।
किसानों ने बताया कि आलू की बोआई सितंबर के अंतिम सप्ताह शुरू हो जाती है जबकि अक्तूबर के अंतिम सप्ताह से आलू उखाड़ना शुरू हो जाता है। बताया कि मौसम साथ दिया तो 75 से 90 दिन में लागत का तीन गुना हो जाता है। कभी कभी मौसम की बेरुखी से किसानों को नुकसान सहना पड़ता है।