Tuesday, April 1, 2025
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महिला दिवस पर विशेष: बिहार में मातृ मृत्यु दर में गिरावट के मायने?

  • राष्ट्रीय औसत से बेहतर रही बिहार में मातृ मृत्यु दर में गिरावट की रफ्तार

पटना, 6 मार्च। 1980 के दशक में प्रख्यात जनसांख्यिकी विशेषज्ञ आशीष बोस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को राज्यों के विकास को लेकर एक रिपोर्ट सौंपी थी। अपनी रिपोर्ट में आशीष बोस ने खराब आर्थिक, सामाजिक और जनसांख्यिकीय विकास वाले राज्यों के लिए पहली बार ‘बीमारू राज्य’ जैसी शब्दावली गढ़ी। उन्होंने कहा था कि बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आर्थिक विकास, हेल्थ केयर, शिक्षा और अन्य मामलों में पिछड़े हैं। तब से अब तक भले ही कई कैलेंडर बदल गए लेकिन आज भी गाहे बगाहे राजनीतिक गलियारों में ‘बीमारू’ शब्द सुनाई दे ही जाता है। ये और बात है कि उत्तर प्रदेश, बिहार सरीखे राज्यों ने पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक प्रगति का शानदार आख्यान रचा है।

बात बिहार की ही करें तो चंद दिन पूर्व ही राज्य के उपमुख्यमंत्री (वित्त) सम्राट चौधरी ने 2024-25 का बजट पेश किया। बजट में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कई लोक लुभावनी घोषणाएं की गईं, लेकिन यहां मातृ मृत्यु दर की चर्चा प्रासंगिक है। क्योंकि आशीष बोस द्वारा बीमारू राज्य की शब्दावली गढ़ते समय मातृ मृत्यु महत्वपूर्ण पैमाना था। इस लिहाज से भी मातृ मृत्यु दर में गिरावट पर नीतीश सरकार की पीठ थपथपानी चाहिए।

बिहार के बजट में कहा गया है कि सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की रिपोर्ट के अनुसार 2025-17 एवं 2018-20 के बीच मातृ मृत्यु दर में बिहार में 47 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह गिरावट 25 अंक रही। यानी बिहार में मातृ मृत्यु दर की गिरावट राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो बिहार सरकार 2030 तक इसे 70 करने को लेकर गंभीरता से प्रयास कर रही है। एसआरएस रिपोर्ट में एक अन्य बात का भी जिक्र किया गया है। उसमें कहा गया है कि मातृत्व स्वास्थ्य में सुधार किसी भी राज्य के लिए बेहतर लोक सेवक का आईना है। संस्थागत प्रसव के मामले में जहां बिहार में 2005-06 से 2019-20 की अवधि में 53.6 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है वहीं राष्ट्रीय स्तर पर 49.9 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है। यानी यहां भी बिहार का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा। बिहार की यह उपलब्धि राज्य में उत्तम स्वास्थ्य संरचना के बारे में भी काफी कुछ बयां करती है।
नि:संदेह अब 2005 से पहले वाला स्थिति बिहार में नहीं है। तब बिहार में जंगलराज कायम था। दिनदहाड़े अपहरण होते थे, कानून व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर थी। विकास के पैमानों पर राज्य कहीं ठहरता ही नहीं था। लेकिन कम से कम अब ऐसी स्थिति नहीं है। यह सुखद अहसास है कि बिहार अब निवेश लाने के लिए बिजनेस कनेक्ट आयोजित करता है। राज्य में निवेश कैसे बढ़े इस पर ना केवल गहन चिंतन मंथन होता है बल्कि सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक आकलन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर आर्थिक वृद्धि दर वर्ष 2022-23 में 3.1 प्रतिशत रही जबकि देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.24 प्रतिशत रही (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार)। इसी अवधि में बिहार की अर्थव्यवस्था 10.64 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ बढ़ी, जो एक बड़ी उपलब्धि है। बिहार की यह वृद्धि दर देश के अन्य राज्यों एवं केन्द्र प्रशासित प्रदेशों से अधिक है। बिहार के बाद 10.2 प्रतिशत के साथ असम दूसरे स्थान पर तथा 9.2 प्रतिशत के साथ दिल्ली तीसरे स्थान पर है।

बिहार की उपलब्धि केवल मातृ मृत्यु दर में गिरावट तक सीमित नहीं है। नीतीश के नेतृत्व में सरकार महिला सशक्तिकरण, महिलाओं की आर्थिक उन्नति के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की है। शराबबंदी को लेकर राज्य में तर्क-विर्तक सालों में हो रहा है और आगे भी होता रहेगा लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि महिलाओं की जिंदगी में यह निर्णय निर्णायक बदलाव लाया है। नीतीश की राज्य में राजनीतिक पकड़ आज भी अगर मजबूत बनी हुई है तो उसमें आधी आबादी का अहम योगदान है। यही वजह है कि सुशासन बाबू महिलाओं से जुड़ी योजनाओं को जमीनी स्तर पर गंभीरता से लागू करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। फिर चाहे वो स्वच्छता की बात हो या हर घर नल से जल पहुंचाने की योजना। हाल के समय में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की ‘जीविका दीदी’ ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं। ग्रामीण विकास विभाग के तहत जीविका स्वयं सहायता समूह सघन अभियान चला रहा है। जीविका ने महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न क्षेत्र जैसे वित्तिय समावेशन, कृषि उद्यमिता, दीदी की रसोई, बैंक सखी, स्वास्थ्य सहित स्वच्छता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है।

जीविका दीदी की ही बात करें तो अब तक कुल 10.47 लाख स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है, जिसके अंतर्गत 1 करोड़ 30 लाख से अधिक परिवारों को समूहों से जोड़ा गया है। अब शहरी क्षेत्रों में भी जीविका स्वयं सहायता समूहों के गठन की योजना है। जीविका दीदी समाज में बदलाव का सूत्रधार बनी हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने जीविका को स्वच्छता ही सेवा के अंतर्गत भी पुरस्कृत भी किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर नल का जल नीतीश के सात निश्चय में भी शामिल था।

ग्रामीण क्षेत्रों में नल का जल 2015 में 2 प्रतिशत से बढ़कर अब शत प्रतिशत पहुंच गया है। हम सभी जानते हैं कि जल से जुड़ा मुद्दा असल में महिलाओं से सीधा जुड़ा हुआ है। घर में पानी के इंतजाम की जिम्मेदारी महिलाओं के ही कंधे पर होती है। सिर पर गगरी रखकर कुंए से पानी लाने के लिए महिलाओं को लंबा सफर तय करना पड़ता है। बिहार में भले ही राजस्थान की मानिंद पानी की समस्या गंभीर नहीं लेकिन

नल से जल की आपूर्ति नहीं होने से ग्रामीण महिलाओं का कीमती समय पानी की व्यवस्था में चला जाता था। इसलिए जब केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय जल जीवन सर्वेक्षण की रैंकिंग जारी करता है, और जब इस रैंकिंग में देश के सर्वोपरि पांच जिलों में 4 जिले बिहार के शामिल होते हैं तो बिहार गर्व से फूला नहीं समाता। बिहार के लिहाज से भले ही मातृ मृत्यु दर में गिरावट बड़ी उपलब्धि हैं लेकिन अभी भी बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की बहुत गुंजाइश है। स्वास्थ्य विभाग में खाली रिक्तियों को भरना होगा। डॉक्टरों की कमी को दूर करना होगा, प्रति हजार व्यक्ति पर डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी। नर्सों की रिक्तियों को तत्काल भरना होगा।

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