बड़कागांव: पंकरी बरवाडीह मेगालिथ स्थल पर विश्व प्रसिद्ध मेगालिथ स्थल पास छाये बादल के कारण दो पत्थरों के बीच सूर्य का करवट बदलते इक्विनोक्स का नजारा देखने पहुंचे खगोल प्रेमियों को निराश होना पड़ा। मेगालिथ स्थल पर 20- 21 मार्च और 22- 23 सितम्बर को समदिवा रात्रि के दिन इक्विनोक्स प्वाइंट से सुर्यगमन के अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
इस समदिवा रात्रि के दिन सुर्य कि किरणें विषुवत रेखा पर सीधी पड़ने एंव दोनों ध्रुवों (उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव) में किसी ध्रुवों को झुके नहीं होने के कारण पृथ्वी पर दिन-रात बराबर होता है और 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद ऋतु होती है। वहीं 23 सितम्बर को स्थिति ठीक इसके विपरीत होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में शरद और दक्षिणी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होता है और पृथ्वी के इसी घूर्णन एंव परिक्रमण गति के कारण दिन-रात एंव ऋतुओं में परिवर्तन होता है।
इस दिन के अलावे मार्च, जून, सितम्बर एंव दिसम्बर में भी दो बडे़ पत्थरों के चारों ओर ज्यामितिय आकार से गणितीय गणना के अनुसार गाडे़ गए 24- 25 छोटे बड़े पत्थरों से इन तिथियों के अलावा अन्य दिनों में भी सुर्योदय का नजारा देखा जा सकता है। इस स्थल के खोजकर्ता अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ता सुभाषीश दास के अनुसार इस स्थल में आदिवासियों व इस क्षेत्र में पुर्व समय में निवास करने वाले की अतिप्राचीन अध्यात्म, समृद्ध व उन्नत ज्ञान और सिद्धांत को यहाँ से जानने, समझने और प्रत्यक्ष रुप से देखने का मौका मिलता है। सदियों से चली आ रही उन्नत खगोलीय व गणितीय गणना से जुड़ी सुर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन में गमन की स्थिति देखा जाता है। जो प्राचीन पंरपरा आज भी कायम है। वही ऐसी ही इक्विनोक्स का खुबसूरत सुर्योदय का अद्भुत दृश्य देखने के लिए लोग इंगलैंड के न्यूग्रेंज, हेरैंज आदि स्थलों पर हजारों लोग जुटते है।
वही पंकरी बरवाडीह का यह ऐतिहासिक स्थल माया सभ्यता और एजटेक सभ्यता से मिलती-जुलती है। क्योंकि उस सभ्यता में भी लोगों में सौर पंचाग देखने का खास महत्त्व रहा था। इस इक्विनोक्स स्थल को स्थानीय निवासी बाल विद्या आश्रम के प्राचार्य रंजीत प्रसाद ने कंपनी व प्रशासन तथा संबंधित विभाग से संरक्षित करने की मांग की है। जिसमें भावी पीढ़ी को हमारे पुर्वजों के उन्नत ज्ञान जान और समझ सकें।