हजारीबाग : इचाक बाजार स्थित बंशीधर मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है. इस मंदिर का निर्माण आज से करीब 254 वर्ष पूर्व पदमा के राजा कामख्या नारायण सिंह के दादा राजा सिद्धनाथ ने करवाया था.
मंदिर की खासियत है कि आज भी राजपरिवार के सदस्य कोई भी शुभ कार्य करने से पहले बंशीधर मन्दिर इचाक में पूजा अर्चना करने आते हैं. सदर के पूर्व विधायक सौरभ नारायण सिंह ने भी चुनाव लड़ने से पूर्व एवं जीतने के बाद सपरिवार बंशीधर मंदिर में आकर माथा टेका.
अब इचाक बाजार के युवक प्रत्येक वर्ष बंशीधर मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर पूजा अर्चना, झूलन महोत्सव एवं भजन कीर्तन कर भगवान कृष्ण की श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं. इस कार्य में मोहन केसरी, बटुल अग्रवाल, सुभाष केसरी, भोला भगत, गोविंद केसरी, मुकेश केसरी, आशीष सोनी, शुभम गुप्ता, पिंटू गुप्ता समेत अन्य युवक प्रत्येक वर्ष सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं.
कैसे हुई थी बंशीधर मंदिर की स्थापना
जानकर बताते हैं कि रामगढ़ से जब राजा इचाक आये तो बाजार के पास किला बनवाया. एक दिन शिकार करने के लिए राजा घोड़ा पर सवार होकर सैनिकों के साथ पोखरिया गांव के समीप बंशीधर जंगल गये. वहां राजा को बांसुरी बजने की आवाज सुनाई दिया. आवाज को सुन राजा ने उस ओर आगे बढ़ने लगे कुछ दूर जाने के बाद जमीन में गड़ा हुआ बांसुरी का कुछ भाग दिखाई दिया. राजा से तलवार से जमीन खोद तो वहां भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति मिली. राजा ने मूर्ति को किला में लाकर विधिवत पूजा अर्चना कर स्थापित किया. लेकिन राजा को स्वप्न हुआ कि मुझे किला से बाहर करो, स्वप्न पाकर राजा ने किला के सामने मंदिर बनवाया. भगवान बंशीधर को यज्ञ कर स्थापित किया. जब राजा इचाक छोड़कर पदमा जाने लगे तो, बंशीधर को पदमा ले जाने की कोशिश की गयी. हाथी को सजाकर उस पर मूर्ति बैठाया गया पर हाथी उठ भी नही सका. इस प्रकार सात हाथियों को बदला गया पर बंशीधर भगवान को लेकर कोई हाथी उठा नही सका. हारकर पुनः मूर्ति को बंशीधर मंदिर में स्थापित किया गया.