Friday, November 15, 2024
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भगवान महादेव के भक्त का रोमांच – महादेव का गोरखपुर: फिल्म समीक्षा

फ़िल्म रिव्यू – महादेव का गोरखपुर
कलाकार – रवि किशन , प्रमोद पाठक , लाल , कियान , सुशील सिंह और इंडी थंपी आदि
लेखक – साईं नारायण
निर्देशक – राजेश मोहनन
निर्माता – प्रितेश शाह , सलिल शंकरन और रवि किशन
रिलीज : 29 मार्च 2024
रेटिंग ✴✴✴✴

आधुनिक भारत और आध्यात्मिक भारत के दो कालखण्डों का समावेश यदि आपको देखना है तो आप थियेटर का रुख कीजिये, क्योंकि आजकल शिवभक्त रवि किशन की एक बेहतरीन फ़िल्म महादेव का गोरखपुर इनदिनों थियेटर में जमकर सुर्खियां और तालियाँ बटोर रही है। भारतीय पुरातन सभ्यताओं को संजोए और अखंड भारत की परिकल्पना लिए इस फ़िल्म में भगवान महादेव के सर्वश्रेष्ठ सेनापति वीरभद्र की बहादुरी और रणकौशल पर आधारित यह फ़िल्म आपको ढाई घण्टे तक बांध कर रख देगी और आप हिल भी नहीं पाएंगे । यदि आप ध्यान इधर उधर भटकाएँगे तो हो सकता है कि फ़िल्म की मूल भावना को ही आप मिस कर जाएं । फ़िल्म महादेव का गोरखपुर भले ही एक काल्पनिक फ़िल्म हो लेकिन इस फ़िल्म ने भारत की सभ्यताओं के अखंड विस्तार को यथार्थ में परोसकर हमें इस बात का अहसास बखूबी कराया है कि भारत पुरातन में भी विश्वगुरु था आज भी है और यह आगे भी रहेगा।

फ़िल्म के कहानी की बात करते हैं तो इसकी कहानी शुरू होती है सन 1525 ईसवी में । जहां पर हो रहे एक बेहद विशाल आयुद्ध पूजा के दिन विदेशी आक्रांताओं द्वारा आक्रमण कर सबकुछ छिन्न भिन्न कर दिया जाता है । इस दौरान शिव मंदिर पर हमला करके वे आक्रान्ता कई सौ शिवभक्तों को भी मौत की नींद सुला देते हैं। ये विदेशी आक्रमणकारी मंदिर परिसर में घुसकर शिवलिंग को भी नुकसान पहुचाने की कोशिश करते हैं,इसी लड़ाई और भागादौड़ी में शिवलिंग की रक्षा करते हुए आचार्य जी शिवलिंग को लेकर ही जलसमाधि ले लेते हैं । इसके बाद कि फ़िल्म की कहानी पुनर्जन्म पर आधारित है लेकिन इसको देखने के बाद आपको जरा सी भी बोरियत का अहसास नहीं होता । पुनर्जन्म में आचार्य और वीरभद्र दोनों ही का पुनर्जन्म होता है , और उसी क्रम में ये अपने पिछले जन्म के अधूरे काम को पूरा करने का संकल्प लेकर उसे सफलतापूर्वक पूरा भी करते हैं । इस फ़िल्म के माध्यम से यही सफलतापूर्वक अहसास दिलाया गया है कि जब जब कोई आक्रमणकारी शिवलिंग के आसपास गलत मंशा से आने की कोशिश किये तब तब भगवान महादेव अपने रुद्रांशो के जरिये भारतभूमि पर उन आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब दिये और धर्म की रक्षा किया । इस फ़िल्म में धर्म और विज्ञान के बेहतर समावेश को भी बखूबी बखान किया गया है और यह साफ साफ परिलक्षित होता है कि कुछ भी इसमें अनायास ही नहीं हो रहा है । इस दुनिया मे धर्म हर विज्ञान का जोड़ा इस भारतभूमि पर ही बखूबी देखने को मिल सकता है।

फ़िल्म में अभिनय पक्ष की बात करें तो रवि किशन सदा की तरह इसमें ज्यादा लाउड या ओवर एक्साइटेड नहीं नजर आए , और इस बात को वर्तमान दौर के भोजपुरी फ़िल्म निर्देशकों को समझना होगा कि किस तरह से उनका इस्तेमाल इस फ़िल्म में निर्देशक राजेश मोहनन ने किया है । अपनी दोहरी भूमिका वीरभद्र और डीआईजी पंकज पाण्डेय के किरदार में रवि किशन कहीं भी बोझिल नजर नहीं आये , ऐसा लगा जैसे कि इस किरदार को इनसे बेहतर कोई कर ही नहीं सकता था । ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी भोजपुरी फ़िल्म में एकसाथ चार पांच फ़िल्म इंडस्ट्री के कलकारों ने एकसाथ काम किया हो और सबमें बेहतरीन तालमेल भी देखने को मिला । चाहे वो प्रमोद पाठक हों, सुशील सिंह हों, लाल हों, इंडी थंपी हों, या कियान हों सबने फ़िल्म में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने की भरपूर कोशिश किया है । किसी के काम को कमतर करके नहीं आंका जा सकता।

फ़िल्म में तकनीकी पक्ष की बात करें तो अरविंद सिंह ने बेहद जबरदस्त तरीके से फ़िल्म को फिल्माया है, फ्रेम दर फ्रेम आपको इस फ़िल्म में उनकी बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी का नमूना देखने को मिलेगा। फ़िल्म के एडिटर ने भी सिनेमेटोग्राफी में की गई मेहनत को जाया नहीं होने दिया और एक एक फ्रेम को खूबसूरती से एक सूत्र में पिरोने का काम किया है, कहीं कहीं जर्क आप खोजने की कोशिश करेंगे तो भी आप कमी नहीं निकाल सकते । चाहे इस फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर हो या गीत संगीत, यह सभी दक्षिण भारतीय फिल्मों के पैटर्न पर आधारित दिखेगा , वो शायद इसलिए भी हो क्योंकि निर्देशक अपने माहौल के अनुसार कुछ चीजों को वहां के टच में रखना पसंद करते होंगे।

कुल मिलाकर फ़िल्म महादेव का गोरखपुर भोजपुरी सिनेमा में एक जबरदस्त प्रयोग है और यह एक सफल प्रयोग है । इस फ़िल्म को हम चार स्टार के साथ रखेंगे।

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