नई दिल्ली । किताब में रेखा उप्रेती ने अपने यूरोप-यात्रा के संस्मरणों को शामिल किया है। 20 दिनों की इस यात्रा के दौरान लेखिका ने जो 15 संस्मरण लिखे थे, वो किताब में शामिल हैं। यह किताब 120 पन्नों की है, जिसे परिकल्पना प्रकाशन ने छापा है। लोकार्पण और परिचर्चा कार्यक्रम में अभिनेता और रंगकर्मी भूपेश जोशी ने रेखा उप्रेती के संस्मरणों का पाठ किया।
साहित्यकार कुसुम जोशी ने किताब में शामिल यात्रा-संस्मरणों के बारे में कहा कि ये संस्मरण इतने रोचक हैं, कि पाठक भी लेखक के साथ यात्रा के पलों को जीने लगता है। यूरोप में भी लेखिका अपना पहाड़ खोज रही होती हैं। अपने गांव और बचपन को याद कर रही होती हैं।
काफ्का ने जिन गलियों में जीवन जिया, लेखिका ने अपने शब्दों के माध्यम से उसे जीवंत कर दिया है। ये अपने आप में खूबसूरत अहसास है। उन्होंने कहा कि काफ्का कहते हैं कि ऐसी चीज को पढ़ो, जो तलवार की तरह तीखी हो, और अपने भीतर के हिमालय को चीरती हुए निकले, ऐसा गहरा घाव करे कि पढ़ने के बाद आप वो नहीं रहो, जो आप थे। इस किताब को पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि आप एक अलग दुनिया में पहुंच गये। वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने कहा कि डॉक्टर रेखा उप्रेती के लेखन में संवेदनाएं बेहद गहरे रूप में मौजूद हैं।
रेखा उप्रेती ने कहा कि इन यात्रों संस्मरणों को किताब के रूप में छापने की उनकी बिल्कुल इच्छा नहीं थी। जब ये यात्रा संस्मरण विभिन्न वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर लिखे गये, तो पाठकों का जबरदस्त प्यार मिला और किताब के रूप में लाने की गुजारिश की जाने लगी। तब जाकर संस्मरणों का यह दस्तावेज किताब के रूप में पाठकों के सामने आया। उन्होंने कहा, इस यात्रा में मैं अपने भीतर उतरी हूं। अपने आप को जान रही हूं।
जीवन की भागदौड़ में अपने आप से बतियाने का वक्त ही नहीं मिला था। इन यात्रा संस्मरणों के जरिए मैंने खुद से बात की है। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर प्रकाश उप्रेती ने किया।कार्यक्रम का आयोजन खतोकिताबत और हिमांतर के तत्वावधान में किया गया, जिसमें रंगकर्मी मोहन जोशी, पत्रकार शशि मोहन रावत, हिल मेल पत्रिका के संपादक वाई एस बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार कृष्णा सिंह, पत्रकार ललित फुलारा आदि मौजूद रहे।