- केरेडारी टंडवा टू व टंडवा से सिमरिया के आम पब्लिक संडक पर चलना हुआ दुश्वार
- आये दिन प्रदूषण से मिल रही बीमारियों की लाभ, दुर्घटनाओं से लोगों की जा रही है जाने, कंपनी एवंम् साहब हैं मस्त
- मैनेजिंग के बल पर होता है कोल ट्रांसपोर्टिंग:, भाजपा नेता नरेश कुमार महतो
- बड़े अधिकारियों व नेताओं की रहता है संरक्षण प्राप्त,राहगीर रहते परेशान: शेर सिंह
- हायवे की मनमानी से जनता परेशान,आम पब्लिक सड़क में हायवे की रहती है कब्जा
- अधिकारी शुद्ध लेने व व्यवस्था को कायम करने में रहे विफ़ल
- हायवे की कब्जा व आतंक,तेज रफ्तार की कहर से ग्रामीण भयभीत
- हजारीबाग जिला के केरेडारी चट्टीबारियतु माइंस से टंडवा, सिमरिया,चतरा जिला होते हुवे पहुँचता है कोयला टोरी साइडिंग ये है मैनेजिंग पॉवर
- बिना नियम कानून पालन किये बगैर होता है पब्लिक सड़कों से कोयला ढुलाई
- 10 वर्ष प्लस हो जाने के बाद भी कोल कंपनियों द्वारा अलग से कोल ट्रांसपोर्टिंग मार्ग बनाने में क्यों विफ़ल!
सुनील कुमार ठाकुर, केरेडारी, हजारीबाग: हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड क्षेत्र में ओसेल, जेआरएल, समृद्धि एंटरप्राइजेज सहित अन्य कंपनियों की कोल ट्रांसपोर्टिंग गतिविधियों ने स्थानीय लोगों के जीवन को संकट में डाल दिया है। हाईवे पर दौड़ते भारी वाहनों का आतंक, सड़कों पर फैली जहरीली धूल, और प्रदूषित वातावरण में सांस लेना ग्रामीणों की मजबूरी बन गई है। सड़क किनारे बसे परिवार भय और असुविधा में दिन गुजारने को विवश हैं, जबकि विभागीय अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं।
सवाल उठता है कि इन कंपनियों को सार्वजनिक मार्गों पर कोयला ढुलाई की अनुमति किसने दी? अब तक इसका कोई स्पष्ट पत्र या आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई। विभाग और नेताओं की उदासीनता के चलते चंद पैसों की खातिर कई निर्दोषों की जानें जा चुकी हैं।

ओसेल समेत कई ट्रांसपोर्टिंग कंपनियों के हाईवे ट्रक, केरेडारी के चट्टीबारियतु माइंस से कोयला टंडवा, मिश्रौल, सिमरिया, बगरा होते हुए टोरी साइडिंग तक बिना रोक-टोक पहुंचा रहे हैं। कई जगह सार्वजनिक सड़कों पर ही ट्रक पार्क कर दिए जाते हैं, लेकिन कार्रवाई नदारद है।
चतरा जिले में भारी वाहनों पर पाबंदी है, फिर भी हजारीबाग के कोल ट्रक वहां बेखौफ आवाजाही कर रहे हैं। विभाग की यह मेहरबानी और मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। अलग से कोल ट्रांसपोर्टिंग मार्ग की व्यवस्था वर्षों से क्यों नहीं की गई?
जनता का आक्रोश बढ़ रहा है, लेकिन इस उत्पीड़न का अंत कब और कैसे होगा, यह अब भी अनुत्तरित सवाल है।

